लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

हिन्दी काव्य का इतिहास

अध्याय - 5

प्रमुख कवि : चंदबरदाई, जगनिक, अमीर खुसरो एवं विद्यापति

 

प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।

अथवा
विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।

उत्तर -

विद्यापति की पद्यावती के आधार पर हिन्दी के विद्वानों में यह वाद-विवाद अभी तक चलता रहता है कि विद्यापति को भक्त कवियों की कोटि में गिनना चाहिए अथवा श्रृंगारी कवियों की कोटि में। जिस समय जयदेव के गीत गोविन्द की परम्परा में विद्यापति के गीतों का अध्ययन किया जाता है अथवा बंगाल के वैष्णव कवियों की परम्परा का अनुशीलन किया जाता है अथवा विद्यापति की शिव स्तुतियों को आधार बनाया जाता है उस समय विद्यापति भक्त कवि जान पड़ते हैं क्योंकि गीत गोविन्द की भाँति विद्यापति के पदों में राधाकृष्ण के संयोग एवं वियोग की स्थितियों का रसात्मक चित्रण मिलता है। इनके गीतों के आधार पर ही बंगाल के वैष्णव कवि चण्डीदास ने अपने गीतों की रचना की थी। और चैतन्य ने अपने गीतों की रचना की थी और चैतन्य महाप्रभु प्रायः विद्यापति के गीतों को गाते-गाते भाव-विभोर हो जाते थे। इसके अलावा शिव, गंगा, देवी आदि की स्तुतियाँ भी विद्यापति को भक्त कवि सिद्ध करती है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि विद्यापति 'पद्यावली' में राधाकृष्ण के संयोग-वियोग एवं वयः सन्धि, नखशिख वर्णन के निरूपण का जो चित्रण मिलता है उसके आधार पर क्या विद्यापति को भक्त कवि अथवा कृष्णभक्त कवि कहा जा सकता है।

विद्यापति श्रृंगारी कवि है अथवा भक्त कवि? यह विद्यापति की पदावली के सम्बन्ध में प्रमुख प्रश्न है। विद्यापति के गीतों में दो प्रकार की प्रवृत्तियों का विवेचन हुआ है एक तो राधा कृष्ण विषयक शृंगार एवं प्रेम की भावना और दूसरी भक्ति भावना अथवा शिव और गोरी विषयक शान्त रस की प्रवृत्ति। उपर्युक्त दो प्रवृत्तियों में उनकी भक्ति भावना और श्रृंगारी भावना का सामंजस्य नें बैठने के कारण विद्वानों में मतभेद है। एक वर्ग उनको श्रृंगारी मानता है और दूसरा वर्ग उन्हें भक्त सिद्ध करता है। हम नीचे विभिन्न विद्वानों के मतों का विवेचन करते हुए एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचना चाहते हैं। सबसे पहले हम विद्यापति को भक्त मानने वालों के विचार प्रस्तुत कर रहे हैं -

विद्यापति भक्त कवि है - विद्यापति के राधाकृष्ण विषयक गीतों में भक्ति भाव पाने वाले भी बहुत से विद्वान आलोचक है। कुछ लोग तो उन्हें परम भागवत वैष्णव मानते हैं, कुछ अन्य उन्हें शिव मानते हुए भी राधा-कृष्ण के प्रति पूज्य भाव रखने वाला मानते हैं। इनसे भी बढ़कर कुछ उन्हें पंचदेवोपासक मानते हैं और सबसे आगे बढ़कर समन्वयवादी, आलोचक उन्हें एकेश्वरवादी मानते हैं।

डॉ. ग्रियर्सन ने लिखा है “अब विद्यापति के पदों पर विचार करना शेष है। वे सबके सब लगभग वैष्णव पद या भजन है और ऐसी अवस्था में वे साहित्य के एक ऐसे अंग है जिनसे भारतीय साहित्य के सभी विद्यार्थी परिचित है। 'ईश्वर ही प्रेम है' यह पाश्चात्य और पूर्व देश का समान सिद्धान्त है। परन्तु इनके रूप तत्त्वतः भिन्न हैं। पश्चिम के शीतल प्रदेशों में रहने वाले ईश्वरीय प्रेम को पिता और पुत्र के अभिन्न प्रेम का रूप देकर ही सन्तुष्ट रहे परन्तु उष्ण प्रदेश के सत्यान्विषियों ने साधक एवं साध्य के श्रेष्ठ प्रेम को सर्वेश्वरी राधा और सर्वेश्वर कृष्ण का रूप दिया।

विद्यापति के देदीयमान पदों को हिन्दू भक्त काम वासना का तनिक भी अनुभव न करके उसी तरह पढ़ते हैं, जिस तरह सोलोमन के गीतों को ईसाई पादरी पढ़ा करते हैं।

डॉ. विपिन बिहारी मजूमदार - मजूमदार जी विद्यापति को वैष्णव भक्त मानते हैं। विद्यापति की एक भागवत् की प्रति मिली है जिस पर अध्ययन करते समय उन्होंने स्थान-स्थान पर चिन्ह लगाए हैं। विद्यापति की भागवत् के प्रति श्रद्धा थी। इस प्रकार वे वैष्णव ठहरते हैं।

 

शिव नन्दन ठाकुर - विद्यापति को शैव मानते हुए भी राधा-कृष्ण की युगल मूर्ति के प्रति भक्तिभाव रखने वाला मानते हैं, अपनी पुस्तक 'महाकवि विद्यापति' में वे इन्हें गौरी शंकर का उपासक मानते हुए भी उनके राधा-कृष्ण विषयक पदों में पूज्य भाव की झलक पाते हैं। अपना मत उन्होंने इन शब्दों में व्यक्त किया है- 'विद्यापति के समय में मिथिला में तान्त्रिक उपासना की प्रबलता थी। विद्यापति के ऊपर इसका प्रभाव अवश्य पड़ा होगा। सम्भव है कि जब तक विद्यापति अपनी उपासना का रूप स्थिर नहीं कर सके थे, तब तक शक्ति के उपासक थे और ब्रह्मा, विष्णु, महेश से भी शक्ति की उपासना करवाते थे। उस समय भारत वर्ष में विशिष्ट द्वैत मत का भी पूर्ण प्रचार हो चुका था। उसके अनुसार विष्णु-लक्ष्मी, राधा-कृष्ण आदि युगल मूर्ति की उपासना की धारा बह चली थी। विद्यापति ने जब अपनी उपासना का रूप स्थिर और शिवजी को अपना इष्टदेव बनाया तब शक्ति और विशिष्टताद्वैत मतों से प्रभावान्विति होने के कारण केवल शिव जी को अपना इष्ट देव नहीं रखकर युगल मूर्ति गौरी शंकर को अपना इष्टदेव बनाया' जैसा कि इस पद से स्पष्ट है -

"जय जय शंकर, जय त्रिपुरारी।
जय अध पुरुष, जयति अधनारि ॥'

-

एक अन्य स्थान पर शिवनन्दन ठाकुर ने महाप्रभु चैतन्य के मत के गोस्वामी और सहीज या रूप का वर्णन करते हुए विद्यापति को स्पष्ट ही राधाकृष्ण का उपासक कहा है- "गोस्वामी मत के अनुयायी वेद को मानते थे, किन्तु वेद पाठ नहीं करते थे। सहजिया सम्प्रदाय के लोग शरीर में ही सम्पूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड को मानते थे। उनका मत था कि शरीर की सेवा करना ही परमार्थ की प्राप्ति है। स्त्री प्रेम को ही वह ईश्वर प्रेम के रूप में देखते थे। उनके सम्प्रदाय में विद्यापति रानी लखिना देवी में अनुरक्त थे और पीछे से राधाकृष्ण के उपासक हो गये।'

श्री नरेन्द्र नाथ दास - इन्होंने भी विद्यापति को स्मति उपासक माना है। अपनी पुस्तक 'विद्यापति काव्यलोक' में इन्होंने स्पष्ट लिखा है- "हमारी यह धारणा है कि विद्यापति युगलमूर्ति के एक उत्कृष्ट और स्मार्ट उपासक थे, किसी सम्प्रदाय विशेष के नहीं थे। वे द्वैत सिद्धान्त के अनुयायी 'थे।' विद्यापति की राधा-कृष्ण विषयक रचनाओं को लक्ष्य करके ही उन्हें 'अभिनव जयदेव की उपाधि से विभूषित किया गया।

बाबू श्यामसुन्दर दास - बाबू श्यामसुन्दर दास विद्यापति को विष्णु स्वामी तथा निम्बकाचार्य के मतों से प्रभावित मानते हैं। उन्होंने लिखा है- "परन्तु विद्यापति पर माध्व सम्प्रदाय का ही ऋण नहीं है, उन्होंने विष्णु स्वामी तथा निम्बकाचार्य के मतों को भी ग्रहण किया था। न तो भागवत पुराण में और न माधव मत में ही राधा का उल्लेख किया गया है। कृष्ण के साथ विहार करने वाली गोपियों में राधा भी हो सकती है, पर कृष्ण की चिर प्रियसी के रूप में वे नहीं दिखाई पड़ती। उन्हें यह रूप विष्णु स्वामी और निम्बार्क सम्प्रदाय में ही पहले पहल प्राप्त हुआ था। विष्णु स्वामी मध्वाचार्य के समान ही द्वैतवादी थे। भक्त माल के अनुसार वे प्रसिद्ध मराठा भक्त ज्ञानेश्वर के गुरु और शिक्षक थे। राधा कृष्ण की सम्मिलित उपासना इनकी भक्ति का नियम था।

विद्यापति ने राधा और कृष्ण की प्रेम लीला का जो विशद वर्णन किया है, उस पर विष्णु स्वामी और निम्बार्क मतों का प्रभाव प्रत्यक्ष है।'

प्रो0 जनार्दन मिश्र - इन्होंने भी विद्यापति के पदों को वैष्णव भक्ति से ओत-प्रोत कहकर उनमें रहस्यवाद की प्रवृत्ति का प्राधान्य स्वीकार किया है तथा राधा और कृष्ण के रूप में जीवात्मा एवं परमात्मा के मिलन एवं विरह की झाँकी देखते हुए लिखा है कि "विद्यापति के समय में रहस्यवाद का मत जोरों पर था। उसके प्रभाव से बचकर निकलना और किसी अधिक निष्कंटक मार्ग का अवलम्बन करना, इन्हें शायद अभीष्ट न था, अथवा अभीष्ट होने पर भी तुलसीदास की तरह अपने वातावरण के विरुद्ध जाने की शक्ति इनमें न थी। इसलिए स्त्री और पुरुष के रूप में जीवात्मा और परमात्मा की उपासना की जो धारा उमड़ रही ती, उसमें इन्होंने अपने को बहा दिया।'

अब यदि विद्यापति की विचारधारा के बारे में गहनता के साथ अध्ययन किया जाये, तो पता चलेगा कि न तो वे वैष्णव कवि हैं और न राधा-कृष्ण के भक्त, अपितु वे शैव है, क्योंकि मिथिला में 'उगना' की कहानी प्रचलित है, जिसमें 'उगना' के रूप में स्वयं शिव जी विद्यापति की भक्ति से प्रसन्न होकर उनके नौकर के रूप में रहते थे और एक दिन उनकी स्त्री को रुष्ट होकर 'उगना' को मारना चाहा तो विद्यापति चिल्ला उठे "हाँ, हाँ यह क्या कर रही हो? साक्षात् शिव पर प्रहार करती हो उसी दिन से 'उगना' रूप शिव अलक्षित हो गये और विद्यापति उनके विरह में पागल हो गये। जो भी हो, इससे यह तो निर्विवाद सत्य है कि विद्यापति कृष्णभक्त नहीं थे। मिथिला में भी सभी इन्हें शैव मानते हैं, कोई भी इन्हें कृष्णभक्त नहीं स्वीकार करता। दूसरे, इनके शिव सम्बन्धी पद भी इसी बात के साक्षी है कि विद्यापति शैव थे, महेश बानियों में अथवा शिव स्तुतियों में ही विद्यापति की भक्ति-भावना का स्रोत उमड़ता हुआ दृष्टिगोचर होता है, उनके राधा-सम्बन्धी पदों में कहीं भी भक्ति भावना के दर्शन नहीं होते, क्योंकि इन पदों में न तो राधा आधा शक्ति अथवा सर्वेश्वरी हैं और न कृष्ण, विष्णु अथवा सर्वेश्वर हैं।

इसके अलावा जिस समय विद्यापति ने अपने पदों की रचना की, उसी समय न तो मिथिला में कृष्णभक्ति की ही चर्चा थी और न कीर्तन का ही प्रचार था। कीर्तन का प्रचार तो चैतन्य महाप्रभु के समय में बंगाल के अन्दर सबसे पहले हुआ और फिर बाद में सारे उत्तरी भारत में वह कीर्तन की पद्धति फैली। इसके साथ ही विद्यापति के समय में रहस्यवादी विचारधारा का भी प्रचार न था। विद्यापति तो राजा शिव सिंह के दरबारी कवि थे और उनकी फरमाइश पर उनके मनोरंजन हेतु पदों की रचना किया करते थे। इसलिए उनेक राधा-कृष्ण की काम-क्रीड़ाओं में, अठरवेलियों में, सूरत - बिहार में, अभिसार में, विरह में कहीं भी राधा और कृष्ण की भक्ति भावना के दर्शन नहीं होते।

विद्यापति शृंगारी कवि हैं

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल - ये विद्यापति को शृंगारी कवि मानते हैं। उनकी पदावली में आध्यात्मिक संकेत देखना बहुत बड़ा भ्रम मानते हैं। उनके शब्दों में "विद्यापति के पद अधिकतर श्रृंगार के ही हैं, जिनमें नायिका और नायक राधा-कृष्ण हैं। इन पदों की रचना जयदेव के गीतकाव्य के अनुकरण पर ही शायद की गई हो। इनका माधुर्य उद्भुत है। विद्यापति शैव थे। उन्होंने इन पदों की रचना शृंगार काव्य की दृष्टि से की है, भक्त के रूप में नहीं। विद्यापति को कृष्णभक्ति की परम्परा में न समझना चाहिए। आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गये हैं, उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने 'गीत-गोविन्द' के पदों में आध्यात्मिक संकेत बताया है, वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी ।

श्री रामवृक्ष बेनीपुरी - बेनीपुरी इन्हें शैव मानते हुए भी राधा-कृष्ण विषयक पदों को श्रृंगारी मानते हैं। उनका कथन है कि "इनकी कविताएँ विशेषतः राधाकृष्ण विषयक है। अतः लोगों की धारणा है कि वे वैष्णव रहे होंगे। बंगाल में भी पहले यही धारणा थी। बाण ब्रजनन्दन सहाय ने अपने समर्पण पत्र में इन्हें 'वैष्णव कवि चूड़ामणि' लिखा है। किन्तु जनश्रुति और प्रमाण इसके विरुद्ध है बात ये है कि ये शृंगारिक कवि थे।"

डॉ. रामकुमार वर्मा - डॉ. वर्मा ने भी विद्यापति को शृंगार कवि मानते हुए स्पष्ट लिखा है कि "विद्यापति ने राधा-कृष्ण का जो चित्र खींचा है, उसमें वासना का रंग बहुत ही प्रखर है। आराध्यदेव के प्रति भक्त का जो पवित्र विचार होना चाहिए, वह उसमें लेशमात्र भी नहीं है। सख्यभाव से जो उपासना की गई है, उसमें कृष्ण तो यौवन में उन्मत्त नायक की भाँति है और राधा यौवन की मदिरा में मतवाली एक मुग्धा नायिका की भांति। राधा का प्रेम भौतिक और वासनामय प्रेम है। आनन्द ही उद्देश्य है और सौन्दर्य ही उसका कार्य कलाप। यौवन ही से जीवन का विकास है। अंग्रेजी कवि 'वायरन' के समान विद्यापति का भी यही सिद्धान्त है कि 'यौवन के दिन ही गौरव के दिन है। डॉ. रामकुमार वर्मा विद्यापति के राधा-कृष्ण विषयक शृंगार वर्णन में भक्ति भाव का अभाव पाते हैं। उन्होंने आगे चलकर कवित्वमय शैली में लिखा है- "विद्यापति के इस बाह्य संसार में भगवत भजन कहाँ, इस वयः सन्धि ने ईश्वर से सन्धि कहाँ, सद्यः स्नाता में ईश्वर से नाता कहाँ, अभिसार में भक्ति का सार कहाँ।'

सारांश - निष्कर्ष यह है कि विद्यापति भक्त नहीं, अपितु शृंगारी कवि हैं। इनके राधा और कृष्ण के प्रेम सम्बन्धी गीतों में सर्वत्र भौतिक एवं वासनामय प्रेम की ही प्रधानता है। इनके वयः सन्धि, नखशिख, सद्यः स्नाता, नोक-झोंक, सखी -शिक्षा, अभिसार, दूती प्रसंग, मान, मान-भंग आदि से सम्बन्धित समस्त पदों में भौतिक प्रेम एवं काम वासना का ही प्रधान्य है, कहीं भी जीवात्मा एवं परमात्मा के मिलन एवं विरह की ओर ध्यान नहीं आता और न कहीं तनिक भी भक्ति भावना की ही सुगन्ध आती है। ये सभी पद श्रृंगार रस से अप्लावित हैं, इसमें वासना की वेगवती सरिता प्रवाहित हो रही है और इनमें आत्मा एवं परमात्मा के आध्यात्मिक जगत की अपेक्षा विलास - वासना एवं कामुकता के भौतिक जगत का ही चित्रण है, जिसमें कहीं कामुक नायक लुक-छिप कर कामिनी नायिका के अंग सौन्दर्य को देखकर उन्मत्त हो रहा है, कहीं उसके साथ काम क्रीड़ाएँ कर रहा है और कहीं कामिनी नायिका अपने प्रिय के विरह में तड़प रही है, अपने यौवन को कोस रही है, कामाग्नि में जल रही है तथा प्रिय से मिलने के लिए आतुर होकर मदन के तीक्ष्ण वाण का शिकार हो रही है।

इस प्रकार विद्यापति के सम्पूर्ण पदों में श्रृंगार का ही प्रधान्य है भक्ति का नहीं, वासनात्मक प्रेम का ही बाहुल्य है। आध्यात्मिक प्रेम का नहीं, और कामोद्दीपक भावों का ही प्राचुर्य है साधन सम्बन्धी भावों का नहीं। इसलिए विद्यापति के इन पदों में रहस्यवाद के दर्शन करना व्यर्थ है, सांख्यभाव की उपासना को ढूँढ़ना मिथ्या है और जीवात्मा परमात्मा के सम्बन्ध की स्थापना करना कोरी खींचतान है। इनमें तो मानव की मूल्य भावना काम का सांगोपांग चित्र अंकित किया गया है और इनका सम्बन्ध लौकिक जगत से है, पारलौकिक से नहीं, क्योंकि इसमें जीवन के भौतिक आनन्द का उज्जवल रूप अंकित है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book